तेरे दरसन को जियारा तरसे
(तर्ज : कुणी काही म्हणा, मज भान नसे...)
तेरे दरसन को जियरा तरसे,
हूँ आस लगा चरणों में तेरे ।
चाहे तार कि मार ये दुनियासे,
हम बैठे है मर्जीपे तेरे ।।टेक।।
उस मात-पिताने जन्म दिया,
और ग्यान दिया कुछ जनताने ।
संतोंने उद्धार का मार्ग दिया,
पर नहीं बनता हाथोंसे मेरे ।।1।।
इस नश्वर जीवन में कहाँसे,
पाऊँगा प्रभुकी भक्ति बडी ।
जो बनता है, करता हैं सही,
पर मन नहीं देता भजन करे ।।2।।
तीरथ-मन्दिर भी जाता हूँ,
कुछ पोथी-पाथी पढता हूँ ।
पर ध्यान विषयमें ही भटके,
नहीं जमता साधन कोऊ करे।।3।।
बस प्राण ही देना है आखिर,
महाद्वारपे अंत समाधी लगा ।
तुकड्या कहे-नाथ अनाथनके ,
एक बार मिलो,फिर दुःख हरे ।।4।।