क्यों मरने घबडाता बन्दे, मरना एक खुशाली है ! !

(तर्ज : कौन आया मेरे मनके भीतर... )

क्यों मरने घबडाता बन्दे, मरना एक खुशाली है ! !
सुख की निन्द छगेगी मीठी, दुनिया मरनेवाली है ।।टेक॥
बिना मरे है चैन कहाँसे ? जीना ही दुखदायी यहाँ।
उछल उछल कर जी घबडाये, कहीं न शान्ति कहाली है ।।१॥ 
काम -क्रोध -मद-मत्सर-माया, जी भर जाल बिछाया है।
बिन झंझट एक पल नहिं जाये, नाहक की ही हमाली है ।।२॥
गर जीना ही है हमको, कुछ जीने जैसा काम करो।
अलग रहे, सुख -दुख को छोडे, साक्षी रहे वनमाली है ! ।।३।।
जीते जी मरना जो  जाने, उसको तो है मौज यहाँ।
तुकड्यादास कहे नहिं तो फिर,फोकट की ही दलाली है ! ।।४ ।।