तेरी मालपे काल करे पहिरा
(तर्ज : कुणी काही म्हणा, मज भान नसे..)
तेरी मालपे काल करे पहिरा,
सब लिखता है, तू क्या करता !
हर श्वास तेरा जाता है गिना,
तू पाप और पुनके घर भरता ।।टेक।।
तुझको तो सिखाया माताने,
तू दूध पिया कि अन्न लिया ।
फिर बाप सिखाये, खेलो -कुदो ,
उनके कहे दिनभर ही फिरता ! ।।1।।
गुरुजीने पढाया ग्यान जरा,
लिखना और जगमें क्या करना ।
साथीने सिखाया प्यार-मजा,
फिर शादि करे स्रियमें झुरता ।।2।।
ये सब कुछ सबने बोल दिया,
पर तेरी सुफलता है किसमें ?
तू पेटका जनवर ! - जैसा हैं,
कई बार जनमता आओ मरता ।।3।।
अब सोच-समझकर यह सीखे ,
मैं अमर हूँ मरनेपर कैसे ?
तुकड्या कहे, कर संत-संगतको ,
तब आखर भवसागर तरता ।।4।।