तीर्थ बनते वहाँ, जहाँ लोग जगे है
(तर्ज : वे तो बिन-जाप-तापे न...)
तीर्थ बनते वहाँ, जहाँ लोग जगे है ।
अपने आदर्श कामोंमें, खूब लगे है।।टेक।।
जिसकी जरुरत है सारे देश के उठाव को ।
जिसकी पूर्तिसेही मार्ग मिलते बहाव को ।
जिसके पूरन होनेसे लोग बसे छांव को ।
जिसके प्रेमसे ही सारे मिटे भेद-भावको ।
ऐसे जहाँ नेक कार्य, धर्म उगे है ।। अपने0।।1।।
मार्ग नहीं पाता, जब व्यक्ति और समाज को ।
भारी होता संकट, उस देशको और राज को ।
कोई उठा सकता नहीं, अकेले आवाज को ।
बडे-बडे पंडित, बताते यज्ञ - याग को ।
कहता तुकड्यादास, लोभी दूर भगे है।।अपने0।।2।।