आँखे हैं-सन्तो की बाणी हमारे

(तर्ज : इस तन-धन की कौन बढाई... )

आँखें हैं-संतों की   बाणी  हमारे ।
जो संत बोले, वह करके निहारे ।।टेक।।
किसने कहा-चार दिनकी है बारी ?
पर क्यों करें, दिनदहाडे भी चोरी ? ।।1।।
किसने कहा-जिन्दगी में ही मरना ?
पर क्यों अधिक बालबच्चे ही करना ?।।2।।
किसने कहा-सूख पाना धनोंका ।
पर घूंस-लुचपत से ही होगा   बांका ? ।।3।।
किसने कहा, कि पढा आदमी हो ।
पर    क्यों   झगडे   लगाऊँ  सही   हो ।।4।।
किसे भी कहन दो, न मानेंगे दिलसे ।
हम तो चलें, संत    उपदेश    ही    से  ।।5।।
सभी बातें संयमसे  करना सिखेंगे ।
कहे    दास   तुकड़या, तभी   उद्धरेंगे ।।6।।