कितने साधू आये, ग्यान, सुनाये

(तर्ज: सद्गुरू नाम तुम्हारा दिलसे...)
कितने साधू आये, ग्यान, सुनाये,
मानव - जीवन   नहि  सुधराये ।।टेक।।
यह संसार   अंधेरा   छाया ।
बिन संगति सुधरे नहि काया ।
सबने इसका  अनुभव   पाया ।
फिरभी जोर लगाये, भजन सुनाये,
अपना बल  इस   काम   लगाये ।।१।।
ऐसाही था  गांधी महात्मा ।
सत्यप्रयोगी निर्भय आत्मा ।
रचनात्मकथी जिसकी महिमा ।
सबसे काम कराये,राष्ट्र जगाये,
घर - घर   प्रेमके   दीप  जलाये ।।२।।
जब थी नौखाली में आँधी ।
खूनी झगडों में   बरबादी ।
घर-घर में समझावे गांधी ।
मुझको नहिं सुख भाये,ऐक्य न पाये
हिन्दू - मुस्लिम     प्रेम    कराये ।।३।।
क्यों इन्सान लडें आपस में?
अपना मन रखते नहि बस में ।
क्या सुख है ऐसे अपजश में ?
तुकड्या भी कहता है,फर्ज सुनाये,
बिन सुधरे धोखा   जब   खायें ।।४।।