वही है महामूर्ख, नर जन्म पावे
(तर्ज ; इस तन-धन की कौन बढाई... )
वही है महामूर्ख, नर जन्म पावे ।
जो अपनेसे अपनेको खुद ही डुबावे ।।टेक।।
जैसे समझहीन जनवर बिचरता ।
वैसे ही नर होके व्यभिचार करता ।।1।।
जैसे पशु-पक्षी लड़ते और पड़ते ।
सत्ता के खातिर यह भी झगडते ।।2।।
नर-जन्म की पूंजी मालूम नहीं है ।
इसीको सदा झूठ की चाह ही है ।।3।।
सुनो ज्ञान-विज्ञान, सत्संग पाओ ।
तभी दास तुकड्या कहे,सुध लावो ।।4।।