सुन्दर तेरा मन, सुन्दर है बदन

                     (तर्ज : हुशियार रहो. .)
सुन्दर तेरा मन, सुन्दर है बदन, पति-पत्नि सुन्दर है घर में ।
धनकी न कमी, इज्जत है जमी,एक छोटासा मन्दर है उसमें ।।टेक।।
पर एकही बातसे बात नडी,नहिं पुत्र कोई यही फिक्र पडी।
बेचैन हमारा दिल रहता,सब जिन्दगी चक्कर में ही खडी ।।1।।
सब देव पूजा,जप जाप भजा,पर शांति नहीं जीवनभरमें ।
अब आये शरण गुरुदेव तेरी, कुछ राह बताओ जीवनका ।।2।।
एक पुत्र मिले हमरे कुलमें, तब दुःख मिटेगा ये मनका।
गर ये न हुआ, नहीं पायि दुवा, फिर नाव पड़ेगी चक्करमें ।।3।।
गुरूदेवने मंत्र दिया उसको, दोनोंकि तबीयत दिखवाले।
हो वैद्य कोई, डॉक्टर हो कोई, उसे जीवन-जन्तु उपजाले ।।4।।
तेरा काम बने, फिर पुत्र मने, क्यों नाहक ढूंढे दरदरमें?।
दोनों के बात जमी दिलमे, गये कुटुंब-सुधारके आफिसमें ।।5।।
वहाँ काम बना उन दोनोंका, एक पुत्र हआ खुशि है जिसमें।
बस प्रेम लगा,जीवन है जगा,कहे तुकड्या कुल -कुलन रमे ! ।।6।।