हिंसा की दिवारोंपर, अहिंसाकी लिखी बानी।

(तर्ज: प्रभू हा खेल दुनियेचा.... )

हिंसा की दिवारोंपर, अहिंसाकी लिखी बानी।
मजा थी पढनेवालोंकी,बनी नाहक थी हैरानी! ।।टेक।।
चूंसकर खून गरिबोंका, बनाया था महल गहरा।
चलो फिर प्रेमकी बातें, टिकेगी केसे जिन्दगानी ?।।१॥
अरे तुम पहिले मर जाओ,फेर चाहे जनम आवो।
समझलो हाल गरिबोंका,बनो फिर देखो इन्सानी ।।२॥
नसल जब जागती होती, बीज कब नूर बदलेगा?।
बहाना ही गलत है ये, कहे तुकड्या बनो ज्ञानी !  ।।३॥