सांकट पर संकट जब आन पडेगो !

    (तर्ज : मोहे पनघटपे नन्दलाल ....)
संकट पर संकट जब आन  पडेगो  !
तुम्हरे बिन कौन नाथ! काम पडेगो ।।टेक ।।
मित्र - पुत्र-भाई कोई ना सहाईं ।
        तिरिया नहीं आयी ।। 
रो-रोके आँखोंमे तूफान पडेगो।। संकट 0 ।।1।।
बचा -बुच्चा धन भी गयो,धीर और जनभी गयो |
       ख़ुद भी बीमार, तन भी गयो ।।
पुछे जमराज आय छाति चढेगो।। संकट0 ।।2।।
इस कारण कहत नाथ, बरद रखो दास माथ ।
        फिरके नहीं छुटे हाथ ।।
तुकड्या का आखरी विश्वास बढेगो।।संकट0।।3।।