चाल चला, चाल चला,चाल चलारे !
(तर्ज : ना मानूं, ना मानूं रे. .)
चाल चला,चाल चला,चाल चलारे ! ।
फेर आखरी में कुंजन की चाल चलारे।।
मेरे दिलको चुराये भली चाल चलारे! ।।टेक।।
पीछे चुराई थी गोपी हजारो।
तेरा चोरी का धंदा तू नही भूला रे, मोहन ! ।।1।।
कितने गोपालोंको मारा बगल में।
हम-जैसे को भी तो मोह डाला रे, मोहन ! ।।2।।
तू भी अजब, तेरी बन्सी अजब है।
दिखने को काला,तेरी वैसी कला रे,मोहन !।।3।।
मैनें कहा कि अब होगा सीधा ।
भगतों के मनमें मार डाला रे, मोहन ! ।।4।।
हमको तो तेरे बिना, सूझे न कोई।
तुकड्याको घेर लिया,बन्सिवाला रे,मोहन !।।5।।