अब तो बदलो ये भारत की शान समझलो
(तर्ज : दो हंसो का जोडा...)
अब तो बदलो ये भारत की शान समझलो ।
अपने जिम्मे जो आये वो काम समझलो ! ।।टेक।।
आलसी न रह पाये जीम्मेदार आदमी।
सबको लेके चले वो ही होगा प्यारा आदमी।
अपना -परका देखे वो है बेकार आदमी।
सबके लिये मरता वो है सरदार आदमी।
जनता को फँसावे, हैवान समझलो ! ।।1।।
पंचायत - राजमें वही कामयाब है ।
न्यायसे ही चले देता माकूल जुबाब है।
ऊँचा चरित्रवाला हो उसका ही दबाव है।
भाई है ना साला, कोई मित्र है ना साब है।
सभी मिलके रहो तो आराम समझलो ! ।।2।।
हर किसकी बाणी बाजार घुमेगी।
अनुभव की छानी दीवार बनेगी।
सेवा की सूरत दीदार बनेगी।
होनहार युवकों की कतार बनेगी ।
सामूहिक जीवन ही प्राण समझलो ! ।।3।।
वही धर्म होगा, जो सबको ईमान दे।
वही धर्म होगा, जो शुध्द खानपान दे।
वहीं धर्म होगा, जो देशको बलिदान दे ।
वही धर्म होगा, जो भूखेको काम दे।
कहे दास तुकड्या, निर्माण समझलो ! ।।4।।