अरे क्या हो रहा तुमसे, सदा घुमतेही रह जाओ

(तर्ज: प्रभू हा खेछ दुनियेचा...) 

अरे क्या हो रहा तुमसे, सदा घुमतेही रह जाओ।
बनेगा काम उतनाही,जमाना  देख  मुड ॒जाओ ।।टेक ॥
शामकी बज गयी घंटी, सिनेमा लोग चल भागे।
रुकानेसे न रुकते हैं, इसे कुछ तो समझ पावो ॥१॥
जरा झगडा कहाँ देखा, वहि रुकता प्रवासी है।
बिना यह ढंग सीखे ना, तो सारा जन्म गमवाओ।। २ ।।
यही तो मैं भी कहता हूँ,करो तुम काम कुछ उनके।
वो तुकड्यादास कहता है,जगत्‌ को फेर नम जाओ।। ३॥