रामभक्ती के भरोसे, गांधीजी रडते रहे

          (तर्ज: आककावा प्रेमभावे. . . )
रामभक्ती के भरोसे, गांधीजी लड़ते रहे ।
दीन जनता के हि बलपर, गांधीजी  बढते  रहे ।।टेक।।
तेज था उनकी तपस्या   का   बडा   संसारमें ।
करके ही हलचल मची, पथ गांधीजी गढते रहे ।।१।। जो मिला अपना किया,यह जादू था उनमे  भरा ।
सच्चरित सज्जन मिले,तब गांधीजी उडते रहे ।।२।।
खादी अपनायी भली, गरिबों की रोटी मानकर ।
हर कहीं चरखा दिया, उस सूत्रसे   चढते   रहे ।।३।।
हरिजनों या कुष्टि, दलितों के बडे सेवक   बने ।
दास तुकड्या यों कहे, जन गांधी ही पढते रहे ।।४।।