तेरे रामनाम मुख में था, था नम्र सभीसे माथा

         (तर्ज : विश्वास से क्यों बैठा है ?...)
तेरे रामनाम मुख में था, था नग्र सभीसे माथा ।
था जनता का सेवक तू,
करुणासे भरा बापू था ।।टेक।।
हरिजन का प्यारा था, वैसा ब्राह्मणका भी  तू   था ।
भंगीमुक्ति चाहता था तू,हर मानव को हि जगाता ।।
तेरी प्यारी अहिंसा ही थी ।
सत् की अपनायी   नीति ।।
यह कीर्ति छिपी नहि किससे,शत्रुपर प्रेम तेरा था ।।१।।
तू था उसका निंदक, जिसने देश गुलाम  बनाया ।
मानव की प्रगती में जो भी रोडा   बनकर   आया ।।
बस देशको छुडवाना था ।
आजाद बना   देना   था ।।
वहि बडी प्रतिग्या तेरी,भगवान को निबटाना था ।।२।।
छलबल  करनेवालोंने तो तुझपर   बिपदा   लायी ।
पता चला पर तू निश्चल था,शान्ति अचल थी भाई !
तेरी आत्मशक्ति का बाना ।
था     फिरंगियोंने   जाना ।।
तुकड्या कहे इस कारणही,तेरा भारत पे काबू था ।।३।।