दयामयी अवतार शांति का भारत से खोगया
दयाययी अवतार शांति का भारत से खोगया ।
अंधेरा जिधरा उधर छागया ।।टेक।।
मानवता का दीप एकदम झडप मार गीर गया ।
अरे ! क्या था, क्या यह हो गया ! !
राष्ट्रपिता, सत्य का पुजारी, मृत्युलोक से गया ।
बस गया, परमधाम बस गया ।।
सेवाग्राम का सेवाधिपति सेवामें बढ गया ।
अमर भगवान अभी बन गया ।।
(अंतरा)
अमर भगवान अभी बन गया ।।
था फकीर, पर था बादशाह से बडा ।
था बूढ़ा, पर नौजवानसे भी बडा ।
दूनियाके सब वादोंपर आगे खडा ।
देशपिता गांधीजी ! तूने सबको चेता दिया ।
शहीदोंका भि मुकुट बन गया ।।१।।
खूब घुमाया चक्र जगत का,असुर-शक्तिसे लडा ।
अंततक लड़ते लड़ते पड़ा ।।
कई अडंगे काट-काटकर कहीं न किससे अडा ।
अकेला था सत्-पथपर खडा ।।
भारतके तो बालवीर औ बूढोंके सर चढा ।
गुणी-बलवानों के दिल गडा ।।
(अंतरा)
वाहवा ! वह तेरा मंत्र अहिंसा पुरा ।
मरते दमतक के नहिं छोड़ा था जरा ।
नहिं किया किसीका इस दुनियामें बुरा ।
कलंक हिंदुओंपर आया,कभी न सोचा गया ।
अरे ! स्वातंत्र्य-सूर्य मिट गया ! ।।२।।
मुर्दोसम दिल हुए हमारे, नूर जरा नहिं कहाँ ।
देश यह दिलके दिल रो रहा ।
बड़ी जबर यह जबाबदारी देदि डालकर महा ।
न ऐसा ख्वाब-किसीमें रहा ।।
बीज बो दिया, फल लगवाया, मुकुट चढाना हुआ ।
देखने क्यों नहिं कुछ दिन रहा? ।।
(अंतरा)
ले दैवि शक्तिकी नशा देशमें भरा ।
वह रहा कार्य नौजवान करदें पुरा ।
हम कभी न कहते रहें-महात्मा मरा ।
अमर हुआ इतिहास देशमें पुराण-सा बन गया ।
गांधीजी रगरगमें छागया ।।३।।
जबतक हैं जीते हम जगमें, तुझको जपते रहें ।
करें वही कार्य जो तूने कहे ।।
दिनहि नहीं निकलेगा ऐसा, तुझे भूलकर रहें ।
तेरे गुण घरघर प्यारे ! कहें ।।
देव कहे, कोई भक्त कहे,जग शहिद भी कह रहे ।
मृत्युसे आप अमर हो गये ।।
(अन्तरा)
करते है श्रध्दांजलि अर्पित आपसे ।
भारतको दो आशीश,मिटे ताप-से ।
ना हटे शत्रुसे और जहर - साँपसे ।
तुकड्यादास कभी ना भूले, जो तुमपर हो गया ।
दाग यह धुले नहीं धो गया ।।४।।