हम आशिक है तेरे दर्शनके, ऐ नाथ! किवाडे खोल जरा |

(तर्ज: दिलें ही नहीं जब शान्ति...)

हम आशिक है तेरे दर्शनके, ऐ नाथ! किवाडे खोल जरा |
हम भूले है भवसागरमें, ऐ नाथ! उजाडे बोल जरा ||टेक ।।
जब द्वारपे पहरा जोर करे, नहिं एकभी गलियाँ जावनको ।
बेचैन जिया तडपे नैना, इस दास के प्रेमको तोल जरा ।। १।।
धनमालसे तुझको कोई गिने,कोई सुन्दर मोह दिखाये तुझे ।
हमने तो सबसे यौंही कहा, भगतीसे लाते मोल जरा ।। २॥।
श्रध्दाकी माल पिन्हाऊँ तुझे, अँसुवन-जलसे नहलाऊँ तुझे ।
सेवाका गीत सुनाऊं तुझे, सो$हं का सुनांऊँ ढोल जरा ।। ३।।
जो कहना था सो बोल दिया, अब रोना ही है बाकी बचा ।
तुकड्या कहे देर न कर पलकी, ये तोड दे पडदे फोल जरा ।। ४ ।।