दुःख से रोती है माता
(तर्ज : गेला हरी कुण्या गांवा... )
दुःख से रोती है माता, उसे रोना नहीं सम्हलाता ।
घरका पुत्र नहीं आता -
दिखता सोता, सोता कहीं रोता ! ।।टेक।।
जाती दौड-दौड धरने, बेटा ! चलो कहे घरमें ।
क्यों पडता इस नाली में, गंदी बुरी दुखाली में ।।
मक्खियाँ मुंहपर घुमती है, बातें जरा नहीं करता।
दिखता सोता,सोता कहीं रोता ! 0।।1।।
बेटा धीरेसे बोला, माता पिला जरा प्याला ।
मैं हूँ रंग में अलबेला, पक्के गुरुजीका चेला ।।
मेरि तू आशा क्यों करती? चाहे इसमें हूँ मरता ।
दिखता सोता, सोता कहीं रोता ! 0।।2।।
दुनिया हँसे हँसकर कहती, तुझको शरम नहीं आती ।
पीता शराब भलिभाँति, बनाता जीवन की माती ।।
माता घबड़ाके बोली, उसको होश नहीं आता ।
दिखता सोता, सोता कहीं रोता! 0।।3।।
बेटा जनम दिया मैने, काला किया मुंको तूने ।
बकता गाली मनमाने, मेरा दुख तू क्या बे जाने ? ?
वो चिल्लाकर समझाती, बेटा समझ नहीं पाता।
दिखता सोता, सोता कहीं रोता ! 0 ।।4।।
खोया धन इन व्यसनोंमे, रखी नहीं कवडी भी घरमें।
लगी औरत -सुत दर -दरमें, माँगे भीख मने शरमें।।
तुकड्या कहे, कौन वाली ? पीकर शराब जो मरता।
दिखता सोता, सोता कहीं रोता ! 0।।5।।