हँसते है कोई, करते न शरम ।

(तर्ज : होठोंपे - हँसी, पलकों ...)

हँसते हैं कोई, करते न शरम ।
गरिबोंकी रहम नहीं आती है ।।
एक दिन उन पर, कभु बीत चले । 
फिर रोते ही रह  जाते  है ।।टेक।।
हैं कौन मेरे, जो साथ करें ।
नहिं मुझको नजर सिर हाथ धरें ।।
यह हो कैसे, तब तुम वैसे ।
गरिबोंकी रहम नहीं आती है ।।1।।
दुसरो को सता, अब तूहि बता ।
तेरा कौन पता, कोई देगा जता ।।
तुझे होगी कदर, तब जाये सुधर ।
गरिबोंकि रहम नहीं आती है  ।।2।।
हैं खून किसीका शम-दम का ।
उसको ही मजा पाये गमका ।।
जिसमें है नसा, अपने तमका ।
गरिबोंक़ि रहम नहीं आती है ।।3।।
नत मस्तक है, सत्‌ से जिनका।
उनको ही ठिकाना  है गमका ।।
तुकड्या कहता, सबमें रहता ।
गरिबोंकि रहम नहीं आती है ।।4।।