विजय का सुमुहूर्त
(ता.२५-१०-१९३६)
उपासकों! प्राचीन समयसे विजयादशमी का दिन बडा शुभमुहूर्त। माना जाता है। इसीदिन प्रभुरामचंद्रने महाबलाढ्य रावणपर विजय पा लिया। इसीदिन पाण्डवोंने शमीवृक्षपर छिपाये अपने शस्त्रोंको फिरसे
उठाकर शत्रुओंपर हमला किया। इसीदिन भारतमें क्षत्रिय लोग अपने शस्त्रोंकी पूजा करके युद्धके लिए अपने गाँवकी सीमा लांघते हुए आगे बढते थे। छत्रपती श्री शिवाजी महाराजकाभी यही नियम था। पुराने
जमानेमें कौत्स नामके एक शिष्यने अपने गुरुकी पूजाके हेतू रघुराजासे धन माँगा था। राजाने अपना सबकुछ पहलेही प्रजामें बाँट दिया था। ऐसी हालत में इंद्रपर चढाई करके धन पानेका इरादा राजाने प्रकट किया, तो। इंद्रने प्रेमसेही चाहे जितना धन देनेकी घोषणा की। निश्चित हुए अनुसार इंद्रने शमीके वृक्षपर सोनेकी लाखों मोहरें बरसायीं।
कौत्सने अपनी गुरुदक्षणाके लिए आवश्यक मोहरें उठायीं,तो रघुराजने कहा- भाई! मैंने तेरेलिए धन प्राप्त किया है, इसलिए तूही ले जा। कौत्सने कहा- मैं गुरुदक्षणाके अतिरिक्त एकभी मुहर ज्यादा नही उठा सकता। राजा कहने लगा- मैं भी इस धनको लेकर
चोर या भिखारी नही बनना चाहता। इसपर मेरा क्या अधिकार है? इंद्र कहता था- मैंने जो दान दिया वह मैं भी वापिस नही ले सकता। कैसी विचित्र समस्या थी? आज तो जबरदस्ती लूटखसोट कर धन लिया जाता है। धन के लिए झूटकपटही नही, खूनखराबाभी किया जाता है। इसीसे तो समाजजीवन पापमय-दुखमय बन चुका है।
आखिर राजाने जाहीर कर दिया कि जनतामेंसे जिसको जितने धनकी जरूरत हो उसको उतना धन यहाँसे लूट ले जाना चाहिए। इसप्रकार सब नागरिकोंने सोना लूट लिया और सबके साथ प्रेमभाव कायम रखते हए, प्रभुका नाम लेते हुए, गाँवकी भलाईका कार्य किया।
ऐसी-ऐसी सभी ऊँची बातोंका स्मरण करते हुए उनको अमलमें लानेका मुहूर्त है आजका सुदिन! गुरुभक्ति, प्रजापालनकी प्रवृत्ति, त्यागभावना, सामुदायिकता, निर्लोभ सेवा यही आजका सन्देश है। मित्रों! प्रभु-रामचंद्रका आदर्श सामने रखकर, अन्यायी अत्याचारी रावणकी जुलमी सत्ताको नेस्तनाबत करनेकी स्फूर्ति हममें आज पैदा होनी चाहिए। अपने ज्ञानशस्त्रद्वारा अहंकाररूपी रावणपर विजय पानेके लिए हमें संकुचित भावनाओंकी सीमासे आगे बढ़ना चाहिए। पाण्डवोंकी तरह नरदेहरूप शमीवृक्षपर छिपाये गयें साधनाभ्यासके शस्त्रास्त्र हमें उठा लेने चाहिए उनकी पूजा करते हुए उनकेद्वारा इंद्रियवृत्तियोंका गोधन हमें अपने वशमें कर लेना चाहिए।
अपने पास जो कुछभी सोना या महत्त्वपूर्ण चीज, ज्ञानआदि हो वह सब समाजको समर्पित कर रामनामका घोष करके सबसे समतासे, स्नेहभावसे मिलजुलकर रहना चाहिए। आपसमें किसी बात मनमुटाव हुआ, शत्रुता बढती गयी, तो आजके दिन वह सब भुलाकर प्रेमसे एक दूसरेके गले मिलना चाहिए। कितना पवित्र, कितना महत्त्वपूर्ण
है यह आजका विजयदिन!
भाइयों! आज प्रार्थनाके रूपमें हमें ऐसी ऊँची भावनाएँ, ऊँची प्रतिज्ञाएँ जरूर करनी चाहिए। भगवान बुद्धकी तरह विकारोंपर विजय पाकर समाजमें सुविचारोंका सुवर्ण बाँटते जाना चाहिए। बाहरी शत्रुओंको जितनेवाला अगर अंदरके शत्रुओंको पालता रहें तो वह शूरवीर होकरभी सुखी नही हो सकेगा। खाली गाडी-घोडे दौडानेसे सीमोल्लंघन नही होता; हमें तो गलत विचारों, गलत रिवाजों की सीमाओंको लांघते जाना चाहिए। शत्रुपरही नही, शत्रुतापर विजय पाकर विश्वबंधुत्व बढाना चाहिए। इसतरह अपने उद्दिष्टको साध लेनेकी आजके सुमुहूर्तपर अगर हम प्रतिज्ञा और प्रार्थना करेंगे, तभी इस दिनकाही नही-जीवनका सार्थक होगा।
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