संतसंगति का रहस्य
(ता.२३-८-१९३६)
प्रिय उपासकों! कलका विषय था, साधन कोईभी हो, वह
प्रभुभक्तिके आधारपर खडा होना चाहिए। प्रभुको पानेकी आंतरिक इच्छाही प्रेमभक्ति का रूप लेती है, अर्थात् वही इच्छा हर कर्मका उद्दिष्ट होनी चाहिए। वैसे तो साधन कई प्रकारके हैं, लेकिन साधनोंका साधन है भक्ति! परंतु भक्ति किस प्रकार करनी होगी? किस देवताकी करनी होगी? ईश्वरका स्वरूप क्या है? जीवनका लक्ष्य क्या है? इत्यादि सैंकडों सवाल पैदा होते
हैं, जिनके जवाब मिलनेकी भी जरूरत है ! ये सवाल - जवाब ग्रंथों में भी मिल सकते हैं । लेकिन उनका असली मर्म समझमें आना कठिन हो जाता हैं ।
किताबोंमें रोगोंके लक्षणभी दिये जाते हैं और रोगोंकी दवाएँभो लिखी हुई मिलती हैं । परंतु बिना जानकार वैद्यके उनका यथोचित उपयोग हम अपने आप नहीं कर सकते । उसमें धोखा होने की संभावना रहती है । उसी मुताबिक अधिकार - भेदसे कौनसा साधन उपयोगी होगा ? ग्रंथोंमें दिए ज्ञानका असली मर्म क्या होगा ? इत्यादि बातें सही मायनेमें बिना संत - संगतिके ख्यालमें नही आसकती । इसी कारण भागवतमें कहा गया है कि *सत्संगतिही भगवान को पानेका महाद्वार हैं ! * संत तुकाराम महाराजने ठीकही कहा है कि-
*संतचरणरज लागता सहज । वासनेचे बीज जळूनि जाय । । मग रामनामी उपजे आवडी । सुख घडोघडी वाढो लागे । ।*
सन्तोंके पैरोंकी मिट्टीभी अगर हमारे शरीरको छूजाती है तो हमारे मनकी मलिन वासनाओंका नाश होने लगता है । फिर हमारे दिलमें प्रभुका प्रेम पैदा होता है और सुखका अनुभव आने लगता है । सत्संगतिका यह सामर्थ्य है ! हाँ , यह बात ख्याल में लेनी चाहिए कि पैरोंकी मिट्टी या चरणरज का अर्थ केवल ऊपर - ऊपरका लेना ठीक नहीं होगा । उसका मतलब तो है सन्तोंकी संगति करना , उनके सहवास में रहना । जहाँ * निर्मलं साधुवृंदम्* होता है वहाँ तत्त्वचिंतानुवाद *भी होताही है । * सहज बोलणे हित - उपदेश । करूनि सायास शिकविती* इस वचनके अनुसार सत्संगतिमें सहज रूपसे उपदेश मिलता है और वे अधिकारभेदसे जानबूझकर उचित मार्गदर्शनभी किया करते हैं । इसीलिए परमार्थका सही सहारा
सत्संगही होता है ।
सज्जनों ! यह बातभी ख्याल में रखनी होगी कि सिर्फ सन्तके सहवासमें रहनाही सत्संगति नहीं होती । जिसतरह पंढरपुर क्षेत्रमें श्री पांडुरंगके पास मोंढेसे मोंढा लगाकर चौबीस घण्टे खडे रहनेवाले पण्डेभी सबकेसब भक्त नहीं बनते , उसीतरह संतके साथ रात - दिन जीवन बितानेवाले लोगभी सबकेसब बदल नहीं सकते , ऐसा देखा गया है । मगर ऐसा क्यों ? इसका कारण यही है कि तन की संगति यह कोई सच्ची संगति नहीं है । संगति तो मनकी होनी चाहिए ; वचनकी होनी चाहिए ।
श्रीसन्त ज्ञानेश्वर महाराजने कहा है कि , कमलकी जडके पास । मेंढक रात - दिन पडे रहते हैं , मगर उन्हें मकरंद नहीं मिलता । परन्तु कहीं दूरसे आया हुआ भ्रमर थोडे समयमें ही उसका अमृत जैसा रस लेकर चला जाता है । सत्संगका रहस्य यही हैं । समुंदरके गहरे पानीमेंसे ऊपर आकर सीप ( घोंघा ) स्वातिनक्षत्रका जल ग्रहण कर लेती है और फिर निचे एकान्तमें जाकर उसके मोती बनानेमें लग जाती है । उसीप्रकार सही सत्संगी वही है , जो सन्तोंके वचन ग्रहण कर लेता है और उन्हें अपने जीवनमें उतारता है , बाकी तो सब असत्संगी समझने चाहिए । उनमें से कोई मिष्टान्न के संगी होंगे , तो कोई मानकीर्तिके संगी होंगे । . कोई संतोंकी ठाठबाटसे पूजा करनाही सत्संग समझते होंगे , तो कोई उनके पैर दबानेमेंही धन्यता मानते होंगे । परन्तु उनके वचनके मुताबिक चलना चाहिए इसका उन्हें भानभी नहीं रहता होगा । फिर वे कहाँके सत्संगी ?
मैंने दृष्टान्त सुना है , एक बूढा आदमी मरते - वक्त अपने लडकोंसे बता गया था कि मैंने अपनी जमापूँजी खेत में गाड रक्खी है , उसे निकालकर
बाँट लेना । उसके मर जानेके बाद सभी लडके खजाना खोजना चाहते थे , मगर किसीको सही जगह मालूम नहीं थी । एक संत के पास वे गये । सन्तजीने बुढेका वचन सुनकर उसका मर्म बताया कि लडकों ! पूरा खेत खोद डालो , इसीमें तुम्हारा कल्याण है । * परन्तु यह उपदेश किसीको भाया नहीं । वे लडके मांत्रिकों , ज्योतिषियों और भगतोंके पास दौडे । किसीने होमहवन कराया , किसीने जपानुष्ठान कराया , किसीने दानधर्म कराया , लेकिन कुछभी हाथ न लगा । उलटा , सिरपर कर्जा बढा । उन्होंने जोभी ठिकाना बताया था , गलत निकला । आखिर थक - हारकर उन्होंने सन्तजीकाही कहा माना और पूरा खेत खोद डाला । नतीजा यह निकला कि वह परती जमीन नई ताकतसे भर उठी और ऐसी उपज हुई कि चारों भाई मालामाल हो गये ।
सन्तपुरुष इसी मुताबिक अपने उपदेशोंद्वारा हमको स्वावलम्बन पूर्वक मालामाल बनाना चाहते हैं । हमारी शक्तिको जगाकरही हमें सुखी बनाना चाहते हैं । मगर उनके वचनोंपर अमल करना हमको अच्छा नहीं लगता और हम जादूगरोंके पिछे लगना पसंद करते हैं ; मात्र यह गलत है । तारतम्यदृष्टीसे सन्तवचनोंपर अमल करनाही सच्चा सत्संग है और इसीसे हमें कल्याणका मार्ग मिल सकता है ; भगवानकी प्राप्ति हो सकती है , इसे ख्यालमें रखो ।
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